कोण्डागांव , अक्टूबर 02 -- देशभर में जहां दशहरा रावण के पुतले के दहन के साथ मनाया जाता है वहीं छत्तीसगढ़ के कोण्डागांव जिले के ग्राम भुमका और हिर्री में एक अनूठी परंपरा ने पीढ़ियों से चली आ रही है। यहां रावण का दहन नहीं किया जाता बल्कि मिट्टी से निर्मित उसकी मूर्ति का 'वध' किया जाता है, जिसके बाद ग्रामीण उसकी नाभि से निकलने वाले 'अमृत' को प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं।

यह परंपरा स्थानीय मान्यता पर आधारित है कि रावण की नाभि में अमृत था और भगवान राम ने उसकी नाभि पर तीर मारकर ही उसका वध किया था। ग्राम भुमका के सरपंच रामभरोश ने बताया, "हमारी मान्यता है कि रावण को जलाने से उसकी नाभि का अमृत भी नष्ट हो जाता। इसलिए हम मिट्टी के रावण की नाभि में लाल रंग (अमृत का प्रतीक) भरकर उसका वध करते हैं और उस 'अमृत' का तिलक लगाते हैं।" ऐसी मान्यता है कि इस तिलक से शारीरिक, मानसिक और आर्थिक लाभ प्राप्त होता है।

इस अनूठे आयोजन को देखने के लिए आस-पास के गाँवों से बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते हैं। मूर्तिकार रूपसिंह निषाद ने बताया कि रावण की मूर्ति निर्माण की यह कला पीढ़ियों से चली आ रही है।

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