बेलेम , नवंबर 10 -- ब्राजील के बेलेम में 10 से 21 नवंबर तक हो रहे संयुक्त राष्ट्र के कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज-30 (कॉप-30) सम्मेलन में इस बार मूल निवासियों, जंगलों और पेरिस समझौते पर मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

ब्राजील में दुनिया का सबसे बड़ा वर्षा वन क्षेत्र हैं और बेलेम इस वर्षा वन के किनारे पर ही स्थित है। ऐसे में बेलेम को सम्मेलन के स्थल के रूप में चुने जाने पर दुनिया भर से सराहना मिली है क्योंकि पर्यावरण संरक्षण में मूल निवासियों की भूमिका को उजागर करने के लिए इससे उपयुक्त जगह नहीं हो सकती थी।

ब्राजील के राष्ट्रपति लुईज़ इनासियो लूला दा सिल्वा की सरकार को उम्मीद है कि इस सम्मेलन में 3,000 से ज़्यादा मूल निवासी प्रतिनिधि नागरिक समाज के सदस्यों और वार्ताकारों के रूप में भाग लेंगे। उल्लेखनीय है कि पिछले साल अज़रबैजान में हुए शिखर सम्मेलन में केवल 170 मूल निवासी शामिल हुए थे।

पेरु के मूलनिवासी 'चापरा राष्ट्र' की नेता ओलिविया बिसा ने कहा, "इस बार विश्व के नेता अमेज़न के केंद्र बेलेम आ रहे हैं। हमारे घरों, हमारी नदियों और हमारे क्षेत्रों के करीब।"गौरतलब है कि मूल निवासी हालांकि वार्ता में अपने 'आदिवासी राष्ट्रों' का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते, लेकिन इन नेताओं की इस वार्ता में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। उल्लेखनीय है कि कई मूल निवासी समुदाय अपने आप को एक राष्ट्र के रूप में देखते हैं।

इस शिखर सम्मेलन के शुरू होने के कुछ दिनों पहले ही ब्राजील द्वारा वन संरक्षण के लिए शुरू की गई एक महत्वाकांक्षी पहल को दुनिया भर के दर्जनों देशों ने अपना समर्थन दिया है। "ट्रॉपिकल फॉरेस्ट्स फॉरएवर फैसिलिटी" के नाम से जाने जाने वाले इस फंड ने शुक्रवार तक 5.5 बिलियन डॉलर के निवेश का वादा किया है। नॉर्वे और फ्रांस ने ब्राज़ील और इंडोनेशिया के साथ मिलकर इस निधि के लिए अपनी प्रतिबद्धता जतायी है।

उल्लेखनीय है कि इस निधि के तहत निवेश को लगभग 125 बिलियन डॉलर पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। उम्मीद है कि इस शिखर सम्मेलन में इस निधि के लिए अन्य देशों से भी प्रतिबद्धता हासिल हो सकती है।

दान के बजाय ब्याज-आधारित ऋण द्वारा वित्तपोषित यह निधि वनों की कटाई को रोकने पर केंद्रित होगी। कांगो से लेकर कोलंबिया तक 70 से अधिक 'घने वनों वाले देशों' को वन कटाई की दर को निर्धारित दर से कम रखने पर आर्थिक लाभ प्रदान किया जाएगा । जो देश अपने वनों की रक्षा करने में विफल रहेंगे, उन्हें नष्ट किए गए प्रत्येक हेक्टेयर के लिए जुर्माने का सामना करना पड़ेगा।

गौरतलब है कि पेरिस समझौते को इस वर्ष एक दशक हो गया है और यह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसे 12 दिसंबर 2015 को फ्रांस के पेरिस में अपनाया गया था। यह समझौता 4 नवंबर 2016 को लागू हुआ और इसमें सभी देशों की ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने की प्रतिबद्धता शामिल है। इसमें तापमान को बढ़ने से रोकने की बात भी कही गयी है।

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