नयी दिल्ली , अक्टूबर 18 -- केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा है कि भारत ने स्वदेशी एंटीबायोटिक 'नैफिथ्रोमाइसिन' विकसित किया है जो प्रतिरोधी श्वसन संक्रमणों के खिलाफ और विशेष रूप से कैंसर रोगियों और खराब नियंत्रित मधुमेह रोगियों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
डॉ सिंह ने मल्टी-ओमिक्स डेटा इंटीग्रेशन एंड एनालिसिस के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग" विषय पर आयोजित तीन दिवसीय चिकित्सा कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए शनिवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने निजी फार्मा हाउस वॉकहार्ट के सहयोग से अपना पहला स्वदेशी एंटीबायोटिक 'नैफिथ्रोमाइसिन' विकसित किया है। यह एंटीबायोटिक प्रतिरोधी श्वसन संक्रमणों के खिलाफ प्रभावी है और खासकर कैंसर रोगियों तथा खराब नियंत्रित मधुमेह रोगियों के लिए अत्यंत उपयोगी है। यह एंटीबायोटिक भारत में पूरी तरह से परिकल्पित, विकसित और चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित पहला अणु है, जो दवा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
डॉ. सिंह ने कहा कि भारत को अपने वैज्ञानिक और अनुसंधान विकास को गति देने के लिए एक आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना होगा। उन्होंने कहा कि विज्ञान और नवाचार में वैश्विक मान्यता प्राप्त करने वाले अधिकांश देशों ने निजी क्षेत्र की व्यापक भागीदारी के साथ आत्मनिर्भर, नवाचार-संचालित मॉडलों के माध्यम से ऐसा किया है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान-एएनआरएफ इस दिशा में एक बड़ा कदम है, जिसका कुल परिव्यय पांच वर्षों में 50,000 करोड़ रुपये होगा, जिसमें से 36,000 करोड़ रुपये गैर-सरकारी स्रोतों से आएंगे। उन्होंने कहा कि यह मॉडल अनुसंधान और विकास के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक व्यापक बदलाव का प्रमाण है, जो इसे वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाता है और शिक्षा जगत तथा उद्योग जगत की व्यापक भागीदारी पर बल देता है।
उन्होंने आत्मनिर्भर नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि भारत सरकारी वित्त पोषण पर अपनी निर्भरता कम कर सके और अनुसंधान और नवाचार में वैश्विक मान्यता प्राप्त करने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी और परोपकारी समर्थन की संस्कृति का निर्माण कर सके।
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