उदयपुर , नवम्बर 14 -- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नयी दिल्ली के सहायक महानिदेशक (कृषि प्रसार) डॉ. रंजय कुमार सिंह ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वर्ष 2047 के विजन विकसित भारत को साकार करने के लिए देशभर के कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके) को अनुसंधान और वाणिज्यिक क्षेत्र में पैर जमाने होंगे।
डॉ. सिंह शुक्रवार को उदयपुर में प्रसार शिक्षा निदेशालय के प्रज्ञा सभागार में तीन राज्यों राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के 67 केवीके के कामकाज की समीक्षा कार्यशाला के समापन समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, जोधपुर (अटारी जोन-2) की ओर से आयोजित इस कार्यशाला में देश भर के 150 से ज्यादा कृषि वैज्ञानिकों के अलावा सभी केवीके के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने शिरकत की।
डॉ. सिंह ने कहा कि सरकार की मंशा है कि देश के कृषि विज्ञान केन्द्र पूरे मनोबल, मनोयोग से काम करें। साथ ही अपने कामकाज का दस्तावेजीकरण जरूर करें। दस्तावेजीकरण नीति निर्धारण में मददगार होते हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री की प्रमुख योजनाओं दलहन, तिलहन उत्पादन बढ़ाने एवं प्राकृतिक खेती को आम कृषकों तक पहुंचाने में केवीके को अग्रिम पंक्ति में रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि केवीके ने विगत पांच वर्षों में ऐसी क्या उपलब्धि हसिल की है जो दूसरे केवीके के लिये नजीर बन सके।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) के कुलपति डॉ. प्रताप सिंह ने कहा कि हर पांच वर्ष में किसी भी बीज की किस्म को बदलना इतना आसान नहीं है। एक किस्म को तैयार करने में ही जब दशक लग जाते हैं तो इतना जल्दी नयी किस्म ईजाद करना संभव नहीं है।
कार्यशाला के विभिन्न तकनीकी सत्रों में सामने आई सिफारिश का प्रत्युत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि हमारा पूरा ध्यान 'परिणाम और पैदावार' पर होना चाहिए और यही सफलता का मूलमंत्र भी है। उन्होंने इस बात पर भी खुशी जाहिर की कि कृषि क्षेत्र की बागडोर थामने वालों में युवाओं की भागीदारी ज्यादा है और इसके दूरगामी परिणाम भी सुखद होंगे।
आरंभ में तीन दिवसीय कार्यशाला के तकनीकी सत्रों में उभरकर आयी समस्याओं-सुझावों से ओतप्रोत सारगर्भित प्रतिवेदन प्रस्तुत किये गये। प्रतिवेदन प्रस्तुत करने वालों में डॉ. पी.पी. रोहिल्ला जोधपुर, डॉ. बी. एल. जांगिड़, डॉ. एस. सी. यादव, डॉ. मीना सिवाच रोहतक, डॉ. सी. एम. यादव, डॉ. गंगा देवी, डॉ. एम. एल. चांदावल, डॉ. संदीप, डॉ. पंकज कुमार सारस्वत, करनाल प्रमुख थे।
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