तिरुवनंतपुरम , अक्टूबर 04 -- केरल में बायोमेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एंड सेंटर (ब्रिक)-राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी (आरजीसीबी) के वैज्ञानिकों ने ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए दुनिया के पहले पूर्णतः कार्यात्मक दर्पण छवि नैनोपार (मिरर-इमेज नैनोपोर) विकसित किया है, जिससे रोगों के शीघ्र निदान और व्यक्तिगत चिकित्सा के क्षेत्र में नई संभावनाएँ पैदा हो गयी हैं।

डॉ. के.आर. महेंद्रन के नेतृत्व में, टीम ने इन सिंथेटिक संरचनाओं को डीपीपोरए नाम दिया, जो प्राकृतिक प्रोटीन के उल्टे संस्करणों से बने विशेष पेप्टाइड्स से तैयार की गई हैं।

नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, ये कृत्रिम छिद्र अपने प्राकृतिक समकक्षों की तुलना में अधिक स्थिर और चयनात्मक होते हैं।

डॉ. महेंद्रन ने कहा, "ये परिष्कृत छिद्र शर्करा के छल्लों से लेकर प्रोटीन तक, जैव-अणुओं की एक विस्तृत श्रृंखला का पता लगा सकते हैं, जिससे ये कैंसर के निदान और व्यक्तिगत उपचार के लिए वरदान बन सकते हैं।"प्रयोगशाला परीक्षणों से यह भी पता चला कि दर्पण अणुओं ने स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाए बिना चुनिंदा कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर दिया, जिससे कैंसर चिकित्सा में इसके संभावित अनुप्रयोगों का संकेत मिलता है। आरजीसीबी के निदेशक प्रो. चंद्रभास नारायण ने इस उपलब्धि को 'नैनोबायोटेक्नोलॉजी में एक बड़ी छलांग' बताया और कहा कि यह नवाचार घाव भरने, मांसपेशियों को फिर से स्वस्थ करने, प्रतिरक्षा कार्य और अल्जाइमर तथा पार्किंसंस रोग जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव स्थितियों के उपचार में भी सहायक हो सकता है। यह अध्ययन सीएसआईआर-एनआईआईएसटी, तिरुवनंतपुरम, कंस्ट्रक्टर यूनिवर्सिटी, जर्मनी और सेंटर फॉर ह्यूमन जेनेटिक्स, बेंगलुरु के सहयोग से जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, आईसीएमआर और सीएसआईआर के सहयोग से किया गया है।

रसायन विज्ञान, नैनोटेक्नोलॉजी, और कैंसर जीवविज्ञान को मिलाकर, यह शोध एक शक्तिशाली नए उपकरण का निर्माण करता है जो चिकित्सा निदान में क्रांति ला सकता है।

ये छोटे दर्पण-छवि नैनोपोर एक दिन बीमारियों का जल्दी, सुरक्षित और सटीक पता लगाने में मदद कर सकते हैं, जिससे डॉक्टरों के लिए बीमारियों का निदान और उपचार करने का तरीका बदल जाएगा।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित