पटना , नवंबर 21 -- राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने पार्टी के हालिया निर्णय को लेकर उठ रहे सवालों, विरोधों और समर्थन की प्रतिक्रियाओं पर शुक्रवार को एक विस्तृत संदेश जारी किया है।

उन्होंने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म 'एक्स' पर साझा किये गये संदेश में न केवल आलोचकों को जवाब दिया है, बल्कि अपनी राजनीतिक विवशता और संगठन को बचाने के लिये लिये गये फैसले की मजबूरी भी खुलकर रखी है।

सांसद श्री कुशवाहा ने अपने संदेश की शुरुआत यह कहते हुये की कि पार्टी के निर्णय के बाद पिछले 24 घंटे से प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है। 'कुछ उत्साहवर्धक, कुछ आलोचनात्मक, कुछ स्वस्थ, तो कुछ पूर्वाग्रह से भरी हुई।'उन्होंने स्पष्ट कहा है कि स्वस्थ आलोचना का वह सम्मान करते हैं, क्योंकि इसका मकसद पवित्र होता है और यह उन्हें संभालती और सिखाती है लेकिन, दूषित आलोचना, उनके अनुसार, 'आलोचक की नियत का चित्रण करती है।'पार्टी संरचना को लेकर उठे सबसे बड़े सवाल 'परिवारवाद' पर भी उन्होंने खुलकर प्रतिक्रिया दी।

उन्होंने साझा किये गये संदेश में आगे लिखा है कि, 'अगर आपने हमारे निर्णय को परिवारवाद की श्रेणी में रखा है तो मेरी विवशता को भी समझिये।'श्री कुशवाहा के अनुसार, पार्टी पहले भी विलय जैसे 'अलोकप्रिय और आत्मघाती' निर्णय की वजह से शून्य पर पहुंच चुकी थी। बड़े संघर्ष के बाद पार्टी ने दोबारा जनाधार बनाया लेकिन, 'लोग जीते और निकल लिये, झोली खाली की खाली रही।' उन्होंने कहा कि यह फैसला पार्टी के अस्तित्व और भविष्य को बचाने के लिये अनिवार्य था।

उन्होंने सांकेतिक अंदाज में कहा है कि, 'समुद्र मंथन से अमृत और ज़हर दोनों निकलता है, कुछ लोगों को तो ज़हर पीना ही पड़ता है। परिवारवाद का आरोप मेरे ऊपर लगेगा, यह जानते हुये भी मैंने ज़हर पी लिया क्योंकि पार्टी को बचाना था।'सांसद श्री कुशवाहा ने अपनी पोस्ट में एक शेर लिखकर आलोचकों पर पलटवार भी किया, 'सवाल ज़हर का नहीं था, वो तो मैं पी गया,तकलीफ़ उन्हें तो बस इस बात से है कि मैं फिर से जी गया।'रालोमो नेता दीपक प्रकाश को लेकर उठी आलोचनाओं पर उन्होंने स्पष्ट कहा है कि वह 'कक्षा में फेल छात्र' नहीं हैं। कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की डिग्री रखते हैं और मेहनत और संस्कार दोनों उनके साथ हैं।

उन्होंने समर्थकों से आग्रह किया है कि दीपक प्रकाश को थोड़ा समय दें, वह अपनी योग्यता से खुद को साबित करेगा, आपकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा।'संदेश के अंत में श्री कुशवाहा ने दो टूक कहा कि किसी भी व्यक्ति की पात्रता का मूल्यांकन उसकी जाति या परिवार से नहीं, बल्कि उसकी काबिलियत से होना चाहिये।

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