लखनऊ , नवंबर 07 -- ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने केंद्रीय विद्युत मंत्री को ड्राफ्ट विद्युत (संशोधन) विधेयक 2025 पर अपनी टिप्पणियां सौंपते हुये विधेयक को तत्काल वापस लेने की मांग की है।

इंजीनियरों का कहना है कि विधेयक का उद्देश्य पूरे बिजली क्षेत्र का निजीकरण करना है, जो किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं के लिए आत्मघाती साबित होगा। एआईपीईएफ के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने बताया कि यदि यह विधेयक लागू हुआ तो दशकों में बनी एकीकृत और सामाजिक रूप से संचालित बिजली व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी और बिजली वितरण व उत्पादन के सबसे लाभदायक हिस्से निजी कंपनियों के हाथ सौंप दिए जाएंगे जबकि घाटा और सामाजिक दायित्व सार्वजनिक क्षेत्र को ही उठाने पड़ेंगे।

दुबे ने कहा कि यह विधेयक सार्वजनिक हित में क्षेत्र को सहारा देने के बजाय बड़े पैमाने पर निजीकरण, व्यावसायीकरण और भारतीय बिजली प्रणाली के केंद्रीकरण का रास्ता साफ करने के लिए बनाया गया है। यह सार्वजनिक उपयोगिताओं की वित्तीय स्थिरता, उपभोक्ताओं के लोकतांत्रिक अधिकारों, भारतीय राज्य की संघीय संरचना और देशभर में लाखों बिजली क्षेत्र कर्मचारियों की आजीविका को खतरे में डालता है।

उन्होंने कहा कि लागत-प्रतिबिंबी टैरिफ (कास्ट रिफ्लेक्टिव टैरिफ) का प्रावधान और क्रॉस-सब्सिडी की वापसी से किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं के लिए टैरिफ असहनीय हो जाएगा। दुबे ने बताया कि पहले भी वर्ष 2014, 2018, 2020, 2021 और 2022 में केंद्र सरकार के विद्युत मंत्रालय ने विद्युत (संशोधन) विधेयक पेश किए थे, लेकिन कर्मचारी-विरोधी, किसान-विरोधी और उपभोक्ता-विरोधी प्रावधानों के कारण तथा बिजली इंजीनियर्स, बिजली कर्मचारी, किसान संगठन, उपभोक्ता मंच और कई राज्य सरकारों के कड़े विरोध के चलते ये विधेयक पारित नहीं हो सके।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित