नैनीताल , नवंबर 20 -- उत्तराखंड में रजिस्ट्रेशन शुल्क और स्टांप ड्यूटी में बढ़ोतरी ने आम लोगों की चिंता बढ़ा दी है, नया रेट लागू होने के बाद अब प्रॉपर्टी खरीदना और महंगा हो गया है, खासकर गरीब और मध्यम तबके के लिए घर का सपना पूरा करना पहले से अधिक मुश्किल हो गया है।

सरकार का हालांकि कहना है कि शुल्क में बढ़ोतरी राजस्व बढ़ाने और विकास कार्यों को गति देने के लिए जरूरी है लेकिन जनता इसे अपने बजट पर सीधा प्रहार बता रही है। हल्द्वानी, देहरादून, नैनीताल और रामनगर में लोगों ने बढ़ी दरों को लेकर कड़ी नाराजगी जताई है।

स्थानीय लोगों के अनुसार, पहले संपत्ति के मूल्य का दो प्रतिशत रजिस्ट्रेशन शुल्क लिया जाता था और इसकी अधिकतम सीमा 25 हजार रुपये थी लेकिन अब करीब 10 साल बाद सरकार ने इसकी अधिकतम सीमा बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दी है, यानी कि संपत्ति का दो प्रतिशत या अधिकतम 50 हजार रुपये - दोनों में जो कम होगा, वह शुल्क देना होगा। आम जनता का कहना है कि यह बदलाव उनके सपनों के घर पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डाल देगा। लोगों ने आरोप लगाया कि पहले ही सरकार ने सर्किल रेट बढ़ाकर जमीनें महंगी कर दीं और अब रजिस्ट्री शुल्क बढ़ाकर आम आदमी की जेब पर और दबाव डाल दिया है, कई लोगों ने सरकार से इस निर्णय को तुरंत वापस लेने की मांग की है।

रामनगर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र शर्मा ने कहा कि रजिस्ट्री शुल्क बढ़ाना जनविरोधी कदम है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने यह निर्णय वापस नहीं लिया, तो जनता 2027 के चुनाव में इसका जवाब देगी। स्थानीय निवासी सुमित लोहनी ने कहा कि लगातार बढ़ते सर्किल रेट और रजिस्ट्री शुल्क से घर बनाना मुश्किल होता जा रहा है, वहीं इंद्र कुमार ने कहा कि इस फैसले से स्थानीय पहाड़ी लोगों पर अधिक बोझ पड़ेगा,जबकि बाहरी राज्य के लोग-जो होटल और कमर्शियल व्यवसायों के लिए बड़ी जमीन खरीदते हैं-उनको अधिक लाभ मिलेगा।

उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा इकट्ठा होने वाला अतिरिक्त राजस्व विकास कार्यों में उपयोग किया जाएगा। कुल मिलाकर, रजिस्ट्री शुल्क बढ़ने के फैसले ने राज्यभर में बहस छेड़ दी है। एक तरफ आम जनता का विरोध और दूसरी ओर सरकार का पारदर्शिता वाला तर्क। अब देखना होगा कि सरकार इस बढ़ते जनविरोध पर क्या कदम उठाती है।

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