नैनीताल , नवम्बर 14 -- उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपात्र दिव्यांग प्रमाण पत्रों के ज़रिए शिक्षा विभाग में आरक्षण का लाभ ले रहे कई कार्मिकों के प्रमाण पत्रों की जांच की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए शुक्रवार को राज्य आयुक्त दिव्यांग जन को 19 नवम्बर को अदालत में वर्चुअल पेश होने के निर्देश दिए हैं। यही नहीं राज्य मेडिकल बोर्ड के महानिदेशक को भी नोटिस जारी किया है।

नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड, उत्तराखंड शाखा द्वारा दायर इस जनहित याचिका में याचिकाकर्ता की ओर से आरोप लगाया गया है कि अपात्र लोग धोखाधड़ी से 'दृष्टिबाधित' श्रेणी के तहत आरक्षण का लाभ ले रहे हैं, जिससे वास्तविक दिव्यांग उम्मीदवार अपने संवैधानिक अधिकार से वंचित हो रहे हैं लेकिन इस मामले में प्रशासनिक स्तर पर शिकायतें करने के बावजूद कोई ठोस और पारदर्शी कार्रवाई नहीं हो सकी।

याचिका में कहा है कि राज्य मेडिकल बोर्ड में 2022 में हुए मूल्यांकन में शिक्षा विभाग दिव्यांग श्रेणी के कई कर्मचारी मेडिकल जाँच के लिए जानबूझकर उपस्थित नहीं हुए, जिससे उनके प्रमाण पत्रों के जाली होने का गहरा संदेह पैदा होता है। याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि बताया किशिक्षा विभाग में अध्यापकों व लिपिक वर्गीय श्रेणी में दिव्यांग आरक्षण के तहत, राज्य बनने के बाद 52 पदों में हुई नियुक्तियों में से 13 नियुक्तियां मेडिकल बोर्ड द्वारा सही पाई गई हैं जबकि शेष कार्मिक वर्ष 2022 में मेडिकल बोर्ड द्वारा पुनः कराए गए मूल्यांकन में या तो अनुपस्थित रहे या फिर उनके प्रमाण पत्रों में भिन्नता थी और कुछ को दिव्यांग श्रेणी में नहीं माना गया।

इस मामले में राज्य आयुक्त, दिव्यांग जन से भी शिकायत की गई लेकिन उन्होंने इसे खारिज कर दिया और एम्स ऋषिकेश से पुनर्सत्यापन की मांग को नज़रअंदाज़ कर दिया था।

मामले की पैरवी कर रहे अधिवक्ता गौरव पालीवाल ने बताया कि मामले को गंभीरता से लेते हुए खंडपीठ ने राज्य आयुक्त को अगले बुधवार को वर्चुअली पेश होने के निर्देश दिये हैं। साथ ही महानिदेशक राज्य मेडिकल बोर्ड को नोटिस जारी कर इस मामले में जवाब देने को कहा है।

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