नयी दिल्ली , नवंबर 18 -- उच्चतम न्यायालय ने अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की 'ऑपरेशन सिंदूर' पर उनके सोशल मीडिया पोस्ट के कारण हरियाणा पुलिस द्वारा दर्ज की गयी प्राथमिकी को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को संक्षिप्त सुनवाई की।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति एनके सिंह की पीठ ने श्री महमूदाबाद के इस अनुरोध पर भी ध्यान दिया कि उनके पासपोर्ट को उन्हें वापस कर दिया जाय। प्रोफेसर खान ने अंतरिम जमानत की शर्त के रूप में अपना पासपोर्ट जमा कराया था।

प्रोफेसर खान की ओर से पेश हुए अधिवक्ता निज़ाम पाशा ने जब यह अनुरोध किया, तो न्यायमूर्ति सूर्यकांत मुस्कुराए और कहा, "यह यात्रा करने का सही समय नहीं है।" इसके बाद अदालत ने सुनवाई स्थगित कर दीगौरतलब है कि श्री महमूदाबाद को पहले ही अंतरिम ज़मानत मिल गयी थी और न्यायालय ने उन दो सोशल मीडिया पोस्ट्स की जाँच के लिए एक विशेष जाँच दल (एसआईटी) के गठन का निर्देश दिया था।

सुनवाई के दौरान पीठ ने इस बात पर अपनी नाराज़गी जतायी कि एसआईटी ने जाँच का दायरा बढ़ा दिया है और उसने प्रोफेसर खान के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ज़ब्त कर लिए हैं और पिछले एक दशक में उनकी विदेश यात्राओं के बारे में पूछताछ की है। न्यायालय ने एसआईटी को निर्देश दिया कि वह अपनी जाँच केवल विवादित पोस्ट्स तक ही सीमित रखे और चार हफ़्तों के भीतर इसे पूरा करे।

हरियाणा पुलिस ने अगस्त में अदालत को बताया था कि उसने एक एफआईआर में क्लोजर रिपोर्ट और दूसरी में चार्जशीट दाखिल कर दी है। न्यायालय ने इस पर संज्ञान लेते हुए क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने वाली एफआईआर को रद्द कर दिया था और साथ ही एक अंतरिम आदेश पारित कर मजिस्ट्रेट को शेष मामले में चार्जशीट पर संज्ञान लेने से रोक लगा दिया था।

न्यायालय ने हाल ही में महमूदाबाद पर लगाई गई दो ज़मानत शर्तों को संशोधित करने से इनकार कर दिया और यह भी कहा कि प्रोफेसर को भारतीय धरती पर आतंकवादी हमलों या सशस्त्र बलों द्वारा जवाबी कार्रवाई से संबंधित मामलों पर सार्वजनिक रूप से लिखना या बोलना नहीं चाहिए।

अशोका विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर और राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख महमूदाबाद ने सोशल मीडिया पर कर्नल सोफिया कुरैशी की प्रशंसा करते हुए दक्षिणपंथी टिप्पणीकारों से आग्रह किया था कि वे भी इसी तरह मॉब लिंचिंग, घरों पर बुलडोज़र चलाने और घृणा से प्रेरित हिंसा के अन्य रूपों के पीड़ितों के लिए आवाज़ उठाएँ। एक्स पर लिखी उनकी पोस्ट में कर्नल सोफिया कुरैशी की प्रेस वार्ता को भारत की एक क्षणिक झलक बताया गया था और उसमें यह भी कहा गया था कि कई मुसलमानों की वास्तविकता उससे अलग है जो पेश की जा रही है।

उनके खिलाफ दो आपराधिक मामले दर्ज किए गये थे। एक मामला योगेश जठेरी की शिकायत पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 196, 197, 152 और 299 के तहत दर्ज किया गया और दूसरा हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया की शिकायत पर दर्ज हुआ था जिसमें बीएनएस की धारा 353, 79 और 152 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

उल्लेखनीय है कि वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पहले भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 152 के इस्तेमाल पर सवाल उठाया था, जिसे पूर्ववर्ती राजद्रोह के प्रावधान के स्थान पर लागू करने की बात कही गई थी। उन्होंने बताया कि इस धारा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाला मामला पहले से ही उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है। ।

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