पटना , अक्टूबर 01 -- बिहार के आरा में मौजूद ऐतिहासिक आरण्य देवी की द्वापरकालीन मंदिर में धर्मराज युधिष्ठिर ने मां आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित की थी जिन्हें 'आरा' की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।
आरण्य देवी मंदिर में सालोंभर श्रद्धालु-भक्तों की भीड़ उमड़ी रहती है। चैत्र तथा शारदीय नवरात्र में यहां तिल रखने की जगह नहीं होती है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां पशु बलि नहीं दी जाती है। बल्कि मां को नारियल चढ़ाया जाता है। आरण्य देवी मंदिर में स्थापित बड़ी प्रतिमा को जहां सरस्वती का रूप माना जाता है, वहीं छोटी प्रतिमा को महालक्ष्मी का रूप माना जाता है। इस मंदिर में वर्ष 1953 में श्रीराम, लक्ष्मण, सीता, भरत, शत्रुध्न एवं हनुमान जी के अलावे अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित की गयी थी।
बताया जाता है कि उक्त स्थल पर प्राचीन काल में सिर्फ आदिशक्ति की प्रतिमा थी। इस मंदिर के चारों ओर घनघोर वन था। पांडव वनवास के क्रम में आरा में ठहरे थे। पांडवों ने आदिशक्ति की पूजा-अर्चना की। मां ने युधिष्ठिर को स्वप्न में संकेत दिया कि वह आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित करे। धर्मराज युधिष्ठिर ने मां आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित की। मान्यता है कि भगवान राम, लक्ष्मण और विश्वामित्र जब बक्सर से जनकपुर धनुष यज्ञ के लिए जा रहे थे, तब उन्होंने आरण्य देवी की पूजा-अर्चना की थी। तदोपरांत सोनभद्र नदी को पार किये थे।
अति प्राचीन आरा शहर के नामकरण की प्रचलित कहानियों के अनुसार घने जंगल से घिरा होने के कारण ये 'आरण्य क्षेत्र' से आरा हो गया। महाभारत काल में पांडवों ने भी अपना गुप्त वासकाल यहां बिताया था, बताया जाता है कि घने जंगल के बीच उक्त स्थल पर प्राचीन काल में सिर्फ आदिशक्ति की प्रतिमा थी।
लाेक मान्यता है कि मां ने युधिष्ठिर को स्वप्न में संकेत दिया कि वह आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित करें। तब धर्मराज युधिष्ठिर ने मां आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित की थी। इसके बाद 'आरण्य क्षेत्र' आरण्य देवी के क्षेत्र से बहुत प्रसिद्ध होता गया। दूसरी कहानी जेनरल कनिंघम के अनुसार, ह्वेन त्सांग द्वारा उल्लिखित कहानी का संबंध, जिसमें अशोक ने दानवों के बौद्ध होने के संस्मरणस्वरूप एक बौद्ध स्तूप खड़ा किया था, इसी स्थान से है। आरा के पश्चिम स्थित मसाढ़ ग्राम में प्राप्त जैन अभिलेखों में उल्लिखित 'आराम नगर' नाम भी इसी नगर के लिए आया है। तीसरी कहानी के अनुसार, बुकानन ने इस नगर के नामकरण में भौगोलिक कारण बताते हुए कहा कि गंगा के दक्षिण ऊंचे स्थान पर स्थित होने के कारण, अर्थात् आड या अरार में होने के कारण, इसका नाम 'आरा' पड़ा।
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