अंबिकापुर , नवम्बर 17 -- छत्तीसगढ में सरगुजा संभाग के दूरस्थ क्षेत्र मैनपाट के तराई ग्राम कदनई में एक बार फिर बुनियादी सड़क सुविधा के अभाव ने प्रशासनिक दावों की हकीकत उजागर कर दी। यहां प्रसव पीड़ा से जूझ रही गर्भवती ललिता मांझी को अस्पताल पहुंचाने के लिए पण्डो जनजाति के लोगों को तीन किलोमीटर तक कंधों पर कांवर (झेलेगी) के सहारे पैदल चलना पड़ा।
अस्पताल सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, रविवार सुबह ललिता मांझी को अचानक तेज प्रसव पीड़ा होने लगी। गांव तक कोई सड़क या एंबुलेंस की पहुंच न होने के कारण ग्रामीणों ने तुरंत लकड़ी और कपड़ों से झेलेगी तैयार की और चार युवकों ने बारी-बारी से उसे उठाकर मुख्य सड़क की ओर चलना शुरू किया। करीब 1.5 किलोमीटर चलने के दौरान पीड़ा बढ़ने पर महिला का प्रसव वहीं हो गया। प्रसव के बाद भी ग्रामीण हिम्मत नहीं हारे और कुल तीन किलोमीटर पैदल झेलेगी के सहारे मां और नवजात को मुख्य सड़क तक लाए।
सड़क पहुंचने के बाद ग्रामीणों ने तुरंत महतारी एक्सप्रेस को सूचना दी। मां और बच्चा दोनों को सीएचसी शांतिपारा में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों ने बताया कि दोनों की स्थिति फिलहाल सामान्य है।
घटना बतौली थाना क्षेत्र के कदनई (सुगाझरिया) की है। ग्रामीणों ने बताया कि वर्षों से सड़क निर्माण की मांग की जा रही है, लेकिन अब तक कोई ठोस व्यवस्था नहीं हो सकी। एंबुलेंस, स्वास्थ्य सेवाओं और आपातकालीन सहायता के अभाव में लोगों को हर बार जान जोखिम में डालकर पगडंडी के सहारे मरीजों को ढोकर सड़क तक लाना पड़ता है।
गर्भवती महिलाएं सुरक्षित प्रसव के लिए अस्पताल तक आ जाएं इसे लेकर स्वास्थ्य विभाग का अमला कई चरणों में काम करता है, स्थानीय आंगनबाड़ी और मितानिन आदि सुरक्षित प्रसव के लिए फील्ड में काम करते हैं। इस केस में ऐसा क्यों नहीं हुआ के सवाल के साथ वार्ता ने चीफ मेडिकल ऑफिसर हेल्थ से बात की, डॉक्टर पीएस मार्को ने वार्ता को बताया कि "गर्भधारण का यह केस लिव इन रिलेशनशिप का मामला है, महिला के परिजनों को भी गर्भ के बारे में नहीं पता था, चूंकि मेडिकल रेकॉर्ड में गर्भवती महिला का डेटा नहीं था, इसलिए सुरक्षित प्रसव संबंधी कार्य नहीं हो सका था। वैसे रविवार - सोमवार की दरमियानी रात महिला को शांतिपारा कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में भर्ती किया गया था, जच्चा - बच्चा दोनों सुरक्षित है।
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