रुड़की/देहरादून , अक्टूबर 04 -- वर्तमान समय की कुछ सबसे गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों के लिए स्थायी समाधानों में अग्रणी भूमिका निभा रहा उत्तराखंड के रुड़की स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) ने एक नया नवाचार प्रस्तुत किया है। इसके अन्तर्गत, इनोपैप लैब (कागज़ एवं पैकेजिंग में नवाचार) के शोधकर्ताओं ने पैरासन मशीनरी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, औरंगाबाद के सहयोग से गेहूँ के भूसे से बने पर्यावरण-अनुकूल टेबलवेयर को सफलता पूर्वक विकसित किया है।
आईआईटी निदेशक प्रो. कमल किशोर पंत ने इस सन्दर्भ में शनिवार को बताया, "यह नवाचार समाज के लिए सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करने की आईआईटी, रुड़की की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।" उन्होंने बताया कि जैस्मीन कौर (पीएचडी छात्रा) एवं डॉ. राहुल रंजन (पोस्ट-डॉक्टरल शोधकर्ता) ने मोल्डेड टेबलवेयर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भविष्य के लिए समाधान तैयार करने में नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने बताया कि गेहूँ के भूसे को ढाले हुए, बायोडिग्रेडेबल टेबलवेयर में बदलकर, टीम ने प्लास्टिक का एक सुरक्षित, कम्पोस्टेबल एवं टिकाऊ विकल्प तैयार किया है।
प्रो. पन्त ने बताया कि टिकाऊ, ऊष्मा-प्रतिरोधी एवं खाद्य-सुरक्षित, ये उत्पाद "मिट्टी से मिट्टी तक" के दर्शन को साकार करते हैं, जो धरती से उत्पन्न होते हैं, लोगों के काम आते हैं और बिना किसी नुकसान के मिट्टी में वापस मिल जाते हैं। यह शोध दर्शाता है कि कैसे रोज़मर्रा की फसल के अवशेषों को उच्च-गुणवत्ता वाले, पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों में बदला जा सकता है।"इस परियोजना का नेतृत्व करने वाले कागज़ प्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफ़ेसर विभोर के. रस्तोगी ने बताया कि भारत में हर साल 35 करोड़ टन से ज़्यादा कृषि अपशिष्ट उत्पन्न होता है। इसका एक बड़ा हिस्सा या तो जला दिया जाता है, जिससे वायु गुणवत्ता बिगड़ती है और जलवायु परिवर्तन में योगदान होता है, या सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। गेहूँ के भूसे का उन्नत उपयोग करके, यह शोध न केवल पर्यावरणीय नुकसान को कम करता है, बल्कि किसानों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत भी प्रदान करता है, जिससे एक चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल का निर्माण होता है जो अपशिष्ट को धन में बदल देता है।
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