बैतूल, सितंबर 30 -- मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में बड़े-छोटे झाड़ के जंगलों को आरक्षित वन घोषित किए जाने की प्रक्रिया का जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) संगठन ने कड़ा विरोध किया है। संगठन से जुड़े अधिवक्ता महेश उइके ने मंगलवार को कलेक्टर को ज्ञापन सौंपते हुए आरोप लगाया कि अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) बैतूल, मुलताई और भैंसदेही ने संविधान और कानूनों की अनदेखी करते हुए आदिवासी समुदाय के सामुदायिक वन अधिकारों को मान्यता ही नहीं दी।

अधिवक्ता उइके ने बताया कि वर्ष 1988 में धारा 4 में अधिसूचित भूमि को आरक्षित वन घोषित करने के आदेश जारी किए गए, जो सर्वोच्च न्यायालय के कई निर्देशों का उल्लंघन है। ज्ञापन में विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट की सिविल याचिका क्रमांक 202/95 (दिनांक 12 दिसंबर 1996), आईए क्रमांक 791-792 (दिनांक 1 अगस्त 2003) और सिविल अपील क्रमांक 19869/2010 (दिनांक 28 जनवरी 2011) का हवाला दिया गया है।

संगठन ने आरोप लगाया कि सार्वजनिक और निस्तारी प्रयोजनों के लिए दर्ज भूमि को ग्राम पंचायतों को सौंपने के बजाय उसे आरक्षित वन घोषित कर दिया गया। यह कार्रवाई न केवल संविधान, पेसा कानून 1996 और वन अधिकार अधिनियम 2006 के खिलाफ है, बल्कि राज्य शासन के पूर्ववर्ती निर्देशों (13 जनवरी 1997, 29 अक्टूबर 2001 और 18 फरवरी 2002) के भी विपरीत है।

जयस ने अधिकारियों पर वन विभाग के साथ मिलीभगत कर आदिवासी समुदाय के अधिकार कुचलने का गंभीर आरोप लगाया। ज्ञापन में मांग की गई है कि- संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हेतु प्रस्ताव राज्य मंत्रालय को भेजा जाए। आरक्षित वन घोषित भूमि की पुनर्विचार प्रक्रिया कलेक्टर की निगरानी में कराई जाए। बिना भूमि आवंटन और कब्जा हस्तांतरण के की गई कार्यवाही को अतिक्रमण मानते हुए अधिकारियों पर भू-राजस्व संहिता 1959 के तहत कार्रवाई की जाए।

संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई तो वह वैधानिक और न्यायिक मार्ग अपनाने को बाध्य होगा। ज्ञापन की प्रतियां वनमंडलाधिकारी उत्तर, दक्षिण और पश्चिम बैतूल सहित सभी संबंधित अधिकारियों को भेजी गई हैं।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित