नई दिल्ली, फरवरी 14 -- सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों के बार एसोसिएशन में हाशिए पर पड़े अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को कोटा देने की मांग को तो वाजिब और गंभीर बताया है लेकिन साथ में यह भी कहा है कि वह ऐसा कोई आदेश पारित नहीं कर सकते जिससे कि समाज में जाति और धर्म के नाम पर बंटवारा हो। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कर्नाटक के कुछ वकीलों की इस मांग से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने साथ ही कहा कि बार निकायों में हाशिए पर पड़े समुदायों के वकीलों के लिए आरक्षण की मांग करने वाली याचिका गंभीर है। उन्होंने यह भी कहा कि बार एसोसिएशन में सामाजिक विविधता भी अहम है और जरूरी है, लेकिन कोर्ट इस तथ्य से अवगत है कि वह ऐसे निकायों को जाति और धर्म के आधार पर विभाजित राजनीतिक मंच ब...