बगहा, मार्च 20 -- हरनाटाड़। बढ़ती तकनीक और आधुनिकीकरण से घरों के आसपास चहचहा रही गौरैयों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। झोपड़ी व लकड़ियों के घरों में पहले गौरैये अपने घोषले बनाते थे। लेकिन डिस्टेंपर, पीओपी और टाइल्स वाले पक्के मकानों ने इनके लिए आशियाने की जगह ही नहीं छोड़ी। रही-सही कसर तरंगों ने पूरी कर दी। वर्तमान में गोरैयों की संख्या 80 फीसदी तक कम हो गई है। हालांकि वीटीआर प्रशासन गौरैया की संख्या बढ़ाने के लिए पहल शुरू की है। वीटीआर के जैव विविधता व इको सिस्टम बेहतर होने से आसपास के गांवों में झुग्गी-झोपड़ियों वाले घरों में आज भी गौरैया की चहचहाहट सुनने को मिल रही है। वीटीआर प्रशासन गौरैयों को बचाने व उसकी संख्या बढ़ाने के लिए जागरूता अभियान चलाएगा। जंगल क्षेत्र में गौरैयों के अनुकूल वातावरण तैयार करेगा। प्रकृति व जीवन चक्र के लिए गौरेया...
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