शामली, अगस्त 1 -- गुरुवार को शहर के जैन धर्मशाला में श्री 108 विव्रत सागर मुनिराज ने 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के मोक्ष कल्याणक अवसर पर प्रवचन देते हुए कहा कि दृष्टिकोण के अनुसार संसार की अनुभूति होती है। जैसे कोई सर्प को विष के लिए जानता है तो कोई उसकी मणि के लिए। उन्होंने तीन प्रकार के मनुष्यों का उल्लेख किया। विष चाहने वाले, रत्न चाहने वाले और रत्नत्रय सम्यक दर्शन, ज्ञान, चरित्र चाहने वाले। मुनि ने बताया कि रत्नों का संयोग पुण्य का प्रतीक है। जीवन पुण्य और पाप के रहट के समान है, जिसमें पुण्य और पाप का चक्र चलता रहता है, चाहे वह गृहस्थ हो या मुनिराज। मुनि ने पुण्य के भोग और उपयोग का अंतर समझाते हुए कहा कि जब पुण्य का उपयोग आत्मकल्याण के लिए होता है, तो वह क्षीण नहीं होता बल्कि बढ़ता है। पेन और डायरी जैसे साधनों के उपयोग से उदाहरण द...