वाराणसी, मार्च 18 -- वाराणसी, मुख्य संवाददाता। काशी में तबला वादन का जो राज प्रासाद (महल) खड़ा है, उसकी नींव के एक पत्थर का नाम पं. आशुतोष भट्टाचार्य 'आशु बाबू है। उन्होंने अपने लिए कभी सिर नहीं उठाया वर्ना यह राज प्रासाद ढह गया होता। यह कहना है पद्मश्री डॉ. राजेश्वर आचार्य का। वह सोमवार को ध्रुपद तीर्थ तुलसी घाट पर 'आशु बाबू की स्मृति में उनके शिष्यों की ओर से आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे। डॉ. आचार्य ने कहा कि काशी के तबला इतिहास में पं. आशुतोष भट्टाचार्य 'आशु बाबू का नाम सदैव नींव के पत्थर के रूप में लिया जाता रहेगा। उन्होंने नि:स्वार्थ भाव से संगीत की आजीवन सेवा की। उन्होंने संगीत को धन और मान का माध्यम नहीं बनाया। तबला वादन उनकी नाद साधना का हिस्सा था। वह सिर्फ वही आनंद अपने जीवन में चाहते थे जो एक नाद साधक को आनंद कानन में मिलन...