नई दिल्ली, दिसम्बर 13 -- सुधीश पचौरी, हिंदी साहित्यकार इस गली गया, तो 'कम्यूनल' हुआ, उस गली गया, तो 'सेक्युलर' हुआ। एक में गया, तो दूसरे से गया; दूसरे में गया, तो पहले से गया। सच कहूं, हमारे जैसे तटस्थ साहित्यकार की आजकल बड़ी समस्या है। कुछ लोग अपने हाथों में ठप्पे लिए बैठे हैं कि जरा भी कोई दुश्मन की गली में दिखा, तो छाप दिया कि दुश्मन है! अब तो यारों ने बचे-खुचे तटों पर भी अपने-अपने बुलडोजर चला दिए हैं, तब बताइए कोई तटस्थ कैसे रहे? ऐसा तो कभी न था। साहित्यकारों के झगड़े पहले भी होते थे। मतभेद होते थे, लेकिन मनभेद नहीं। साहित्य तब 'प्राइवेट लिमिटेड' था, आज की तरह 'पर्सनल अनलिमिटेड' नहीं। सोशल मीडिया की कृपा से आज हर कोई साहित्यकार है, लेखक है, कवि है, कथाकार है, विचारक है, फोटोकार व वीडियोकार है। तब साहित्य की अवधारणा उदारवादी थी। साहित्...