नई दिल्ली, जुलाई 5 -- सुधीश पचौरी, हिंदी साहित्यकार बहुत दिनों बाद हिंदी में हंगामा हुआ और अंदर का यथार्थ बाहर आ गया। एक लेखक ने कहा, 'हंगामा है क्यों बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है?', लेकिन जो 'पी' थी, वह 'थोड़ी' नहीं थी और जो किया, वह भी 'थोड़ा' नहीं था। हिंदी साहित्य में रात के बारह बजे चौक में हुल्लड़ मचे की तर्ज पर आधी रात हुल्लड़ मचा। एक ने अतिचार किया, तो आपत्ति हुई। साहित्य में पहली बार कुछ नैतिक प्रश्न उठे और सोशल मीडिया में एक जलजला उठता दिखा। कई दिनों तक नैतिक-अनैतिक का खेल होता रहा, फिर एक दिन ऐसा आया कि नैतिक-अनैतिक का भेद तक न बचा। नैतिक अनैतिक दिखने लगे, अनैतिक नैतिक। बहुत से स्त्रीत्ववादी मर्दवाद को कूटते रहे, बहुत से मर्दवादी स्त्रीत्ववाद को। छह-सात दिन के इस सांस्कृतिक युद्ध में अधिकांश लेखक अपनी छोड़ बाकी सबकी पोल खोलने लगे...