बिजनौर, अगस्त 6 -- हर साल बाढ़ का वही दर्द, वही त्रासदी... जिले का आधा हिस्सा पानी में डूबना, हज़ारों लोग बेघर और प्रशासन की वही पुरानी कवायद। गंगा, मालन, खो जैसी बड़ी नदी समेत कई बरसाती नदियां जब उफान पर आती हैं, तो सिर्फ पानी नहीं बहता.. बह जाती हैं लोगों की उम्मीदें, खेतों की फसलें और सालों की मेहनत। ये नदियां जीवनदायिनी भी हैं तो बरसात के मौसम में विनाशक भी। सवाल वही पुराना है कि क्या इस बार भी सरकार की तैयारी सिर्फ मुआवज़े तक सिमट जाएगी? या अगली बाढ़ से निपटने की कोई ठोस रणनीति बनेगी। अगर बन गई तो उस पर काम होगा? हर साल बारिश में सड़कें नदी बन जाती हैं और जिंदगी थम सी जाती है। सरकारी योजनाओं के ढेरों वादे, लाखों रुपयों की कवायद, फिर भी बाढ़ की मार से बच नहीं पाती जनता। घरों में पानी, भूखे पशु, बेबस लोग बुधवार को धारूवाला, मंडावली गई ...
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