नई दिल्ली, मार्च 15 -- होली के दिन रंग और उल्लास के बीच मेरा मन डोल रहा था। पिछला पखवाड़ा अपशकुनी संदेशों से बजबजाता बीता था। दो राज्यों में तो देश के दो सबसे बडे़ समुदाय भिड़ भी चुके थे। होली परंपरागत तौर पर प्रेम और भाईचारे का त्योहार है। यह त्योहार हम हिन्दुस्तानियों की बीती ताहि बिसारकर आगे की राह पकड़ लेने की रीति-नीति का जीवंत उदाहरण भी है। क्या अब यह एहसास स्वर्णिम अतीत का हिस्सा बनने जा रहा है? इस सवाल के जवाब के लिए मैं आपको पत्रकारिता के अपने शुरुआती दिनों में गोते लगाने के लिए आमंत्रित करता हूं। 1980 की दहाई के शुरुआती बरसों की मुझे वाराणसी और इलाहाबाद (माफ कीजिएगा, प्रयागराज) की वे बैठकें याद हैं, जो हर खास त्योहार से पहले कोतवाली में आयोजित की जाती थीं। इनको अमन कमेटी की बैठक कहा जाता था। जिले के आला अफसरों के साथ तमाम पुजारी, स...
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