नई दिल्ली, जुलाई 13 -- राजेश शुक्ला, आर्थिक विशेषज्ञ जैसे-जैसे भारत अपने पांच ट्रिलियन डॉलर के आर्थिक लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, घरेलू कर्ज (किसी परिवार पर कुल कर्ज) को लेकर होने वाली चर्चा चिंता में बदलने लगी है। बढ़ते कर्ज को आमतौर पर खतरे की घंटी माना जाता है, जो वाजिब भी है, मगर ऐसा सोचते हुए हम एक महत्वपूर्ण पहलू को नजरंदाज कर देते हैं। दरअसल, कई भारतीय परिवारों के लिए कर्ज महज बोझ नहीं, बल्कि निवेश का एक सोचा-समझा साधन है। उनके लिए यह कमजोर सार्वजनिक व्यवस्था से निपटने का तरीका, तो कभी-कभी ऊपर चढ़ने की सीढ़ी भी है। 'प्राइस' की 'आईसीई 360 डिग्री' रिसर्च से मिली जानकारी से पता चलता है कि भारत के 33.1 करोड़ परिवारों में से लगभग 30 फीसदी पर कर्ज है, मगर अलग-अलग कामकाजी समूहों में खूब भिन्नता है। उधार लेने की प्रकृति, उसका उद्देश्य और उसके...
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