हजारीबाग, अप्रैल 20 -- हजारीबाग। डाकिया का एक सामाजिक दर्जा था। वह गांव के बुजुर्गों से लेकर बच्चों तक का चहेता होता था। लोग उसकी बातें सुनते, अपने खत उसे सौंपते, और कभी-कभी चाय-पानी भी कराते। डाकिया ग्रामीण जीवन की आत्मा में रचा-बसा एक भरोसेमंद चेहरा था। 21वीं सदी की शुरुआत के साथ मोबाइल फोन और इंटरनेट का विस्तार हुआ। ईमेल, एसएमएस और अब व्हाट्सएप जैसे इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप्स ने संचार के पारंपरिक तरीकों को पीछे छोड़ दिया। अब लोगों को खत लिखने की ज़रूरत नहीं रही, न ही मनीऑर्डर भेजने की। डिजिटल बैंकिंग, यूपीआई और ऑनलाइन सेवाओं ने डाक सेवाओं की उपयोगिता को काफी हद तक सीमित कर दिया। इसके साथ ही निजी कूरियर सेवाओं का बढ़ता विस्तार भी डाक सेवाओं के लिए चुनौती बन गया। तेजी, ट्रैकिंग सुविधा और घर तक डिलीवरी जैसे विकल्पों ने भारतीय डाक को पीछे छोड़...