मुजफ्फरपुर, मार्च 10 --   मुजफ्फरपुर। कंधे पर कुदाल थामे काम की तलाश में सुबह घर से निकलना और खाली हाथ वापस लौटना। रोटी के लिए चूल्हे के पास ऊंघकर सो चुके बच्चों को देख बेबसी पर आंसू बहाते हुए खुद भी सो जाना कल काम की उम्मीद लिए नए सपनों के साथ। जिले के मजदूरों की यह नियति बन चुकी है। ग्रामीण इलाकों में अकुशल मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने की महती योजना मनरेगा कई स्तरों पर मनमानी का शिकार है। स्थिति यह है कि मेहनतकशों को दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। मनरेगा वाच से जुड़े पदाधिकारियों का कहना है कि मजदूरों को मांगने पर भी काम नहीं मिलता। जिला समाहरणालय से लेकर प्रखंड और पंचायत मुख्यालय तक पर प्रदर्शन करना पड़ता है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की शुरुआत 2006 में भारत सरकार ने एक विशेष कानून को अधिसूचि...