भागलपुर, मई 26 -- सुपौल, हिंदुस्तान संवाददाता वट सावित्री की पूजा के लिए सोमवार को मंदिरों में सुबह से महिलाओं की भीड़ उमड़ने लगी। सुहागिन एक दूसरे की मांग में सिंदूर लगाकर सुहाग की सलामती की कामना की। व्रतियों ने बरगद के पेड़ में सात बार परिक्रमा कर रक्षा सूत्र बांधा। इसके लिए सुबह से ही मंदिर में व्रती के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था। पहले पूजा कर जलाभिषेक किया। इसके बाद मंदिर परिसर के वट वृक्ष की पूजा की। जिस मंदिर में वट वृक्ष नहीं था, वहां व्रतियों ने बरगद की डाल रखकर पूजा की। आचार्य पंडित।धर्मेंद्र नाथ मिश्र ने बताया कि देवी सती सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही पूजा कर अपने पति सत्यवान के प्राण को यमराज से वापस ले आया था। व्रत के पीछे मान्यता है कि वट का मतलब होता है बरगद का पेड़। इस विशाल बरगद के पेड़ में कई जटाएं निकली होती है...