नई दिल्ली, जून 23 -- शशांक, पूर्व विदेश सचिव ना-ना कहते हुए भी अमेरिका आखिरकार इजरायल-ईरान युद्ध में सीधे तौर पर शामिल हो ही गया। वह काफी समय से इस संकट के कूटनीतिक समाधान की वकालत कर रहा था। ईरान के साथ परमाणु समझौते के लिए उसने 60 दिनों का वक्त भी दिया था। मगर जब बात बनती नहीं दिखी, तब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने बी-2 बॉम्बर को ईरान भेजना मुनासिब समझा। इस युद्ध में अमेरिका की सीधी सहभागिता के कयास इसलिए भी नहीं लगाए जा रहे थे, क्योंकि विकसित देशों में यह सोच है कि यदि ईरान अस्थिर होता है, तो पूरे क्षेत्र, विशेषकर मध्य एशिया पर इसका खतरनाक असर पड़ेगा। इतना ही नहीं, इतिहास यह भी बताता है कि अमेरिका यहां के जिन-जिन मसलों में सीधे तौर पर शामिल हुआ, वहां उसे पूरी सफलता नहीं मिल सकी, फिर चाहे वह इराक हो, सीरिया हो या फिर अफगानिस्तान। एक ...