संभल, अप्रैल 14 -- संभल। जब दुनिया पेंट और कैनवास में कला ढूंढ रही होती है, तब संभल की गलियों में कारीगर सींग और हड्डियों को नक्काशी करके उन्हें कला की संजीवनी देते हैं। संभल की उपनगरी सरायतरीन में गलियों में कला सिर्फ उकेरी नहीं जाती, बल्कि जिंदा रहती है। हर हथौड़े की थाप में, हर छेनी की रेखा में और हर उस कारीगर की सांस में, जो सींग और हड्डियों से चमत्कार रचता है। विश्व कला दिवस पर जब पूरी दुनिया रंग और रेखाओं से सजी कला का उत्सव मना रही है, तब उत्तर प्रदेश के संभल जिले का सरायतरीन कस्बा हमें याद दिलाता है कि असली कला वो है, जो परंपरा से जन्म लेती है और संघर्षों में निखरती है। यहां की हॉर्न और बोन क्राफ्ट कोई साधारण हस्तशिल्प नहीं, बल्कि सदियों पुराना एक जीवंत सांस्कृतिक धरोहर है। जिसे न सिर्फ राज्य स्तरीय पुरस्कार मिले हैं, बल्कि GI टैग...