संभल, अप्रैल 20 -- आज के इस तकनीकी और दौर में जहां बाइक और इलेक्ट्रिक वाहनों का बोलबाला है। वहीं साइकिल का चलन धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। इसका सीधा असर उन लोगों पर पड़ा है जिनका जीवन यापन साइकिल से जुड़ी सेवाओं पर निर्भर था। जैसे कि साइकिल मिस्त्री। एक समय था जब गली-मोहल्लों में साइकिल मरम्मत की दुकानें आम बात थीं, लेकिन अब यह पेशा धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। साइकिल मिस्त्री को आज भी न तो सरकारी योजनाओं का लाभ मिल पा रहा है और न ही कोई आर्थिक सहायता। न तो उन्हें औजार खरीदने के लिए अनुदान मिलता है और न ही उनके लिए किसी प्रशिक्षण या विकास कार्यक्रम की व्यवस्था की गई है। ऐसे में मजबूरन उन्हें अपना पुश्तैनी काम छोड़कर मजदूरी, रेहड़ी-पटरी या अन्य अस्थायी कामों की ओर रुख करना पड़ रहा है। शहरों और कस्बों में साइकिल मिस्त्री की संख्या में ते...