आरा, जुलाई 7 -- पीरो, संवाद सूत्र। प्रखंड के परमांदपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन करते हुए संत दर्शन और यज्ञ के महत्व को समझाया। जो माया से दूर रहता है, जिसे संसार की हर वस्तु सामान्य दिखाई पड़ती है। जिसमें अपने-पराए का भेदभाव नहीं होता है, वही संत है। कभी-कभी लोग संत को भी दुनिया की माया से ग्रसित समझते हैं, लेकिन संत किसी से भेदभाव नहीं करते हैं। हालांकि संत की भी मर्यादा होती है। जिस प्रकार सरकार की ओर से किसी भी जिले की देखरेख करने के लिए जिला अधिकारी की नियुक्ति की जाती है और उसकी देखरेख और निर्देशन में ही पूरे जिले में कार्यक्रम या कार्य होता है। उसी प्रकार संत-महात्मा के पास भी कार्य करने के लिए मर्यादा निर्धारित होती है। उदाहरण देते हुए स्वामी जी ने कहा जैसे...
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