नई दिल्ली, जून 26 -- योग के पहले अंग का पहला स्वरूप अहिंसा है। अहिंसा की प्राप्ति होगी, तभी आदमी चित्त को एकाग्र कर पाएगा। अहिंसा का व्यापक अर्थ है- किसी को किसी भी तरह से दुख नहीं पहुंचाना। न वाणी से, न शरीर से। जब हम किसी की समाप्ति या उसे नुकसान पहुंचाने का संकल्प करते हैं, तो यह भी हिंसा है, यह नहीं होना चाहिए। मां हिंस्यात सर्वाभूताणि। हमें किसी के साथ हिंसा नहीं करनी है। इसलिए सनातन धर्म में लिखा है कि मच्छरों, कीट-पतंगों को भी मारने, वृक्ष-लताओं को काटने से भी पाप उत्पन्न होता है। यज्ञ में लकड़ी की जरूरत होती है, पेड़ काटे जाते हैं, तो जैसे यज्ञ से पुण्य मिलता है, ठीक उसी प्रकार हरा-भरा पेड़ काटने से पाप भी मिलता है। इसलिए लोग मनुष्यों की ही नहीं, किसी भी तरह से हिंसा नहीं करें। कौन-सा संप्रदाय होगा, कौन-सी ऐसी जाति होगी, जिसको हिं...