नई दिल्ली, अक्टूबर 25 -- सुधीश पचौरी, हिंदी साहित्यकार एक लेखक ने एक वक्त में एक खास 'सीएम' के हाथों से सम्मान लिया, तो कई ने हाय-हाय की, कई ने थू-थू की, तो कई ने कहा कि शर्म करो, डूब मरो... लेकिन शर्म होती, तो आती। जवाब में कई अन्य ने हाय-हाय करने वाले का 'बायोडाटा' खंगाल डाला और पूछा- यह कौन सा दूध का धुला है? इसने भी तो उसी तरह के एक खास सीएम के हाथों से सम्मान ग्रहण किया है, सो उसकी भी हाय-हाय, शेम-शेम शुरू- नौ सौ चूहे खाए, बिलैया हज को जाए! आज हिंदी का लगभग हर लेखक एक-दूसरे के बायोडाटा का जानकार है। मेहरबानी कृत्रिम बुद्धि की देवी 'चैटजीपीटी' की- एक क्लिक पर, एक रिक्वेस्ट पर किसी का भी सारा कच्चा-पक्का चिट्ठा हाजिर, फोटो समेत हाजिर, वीडियो समेत हाजिर! लेखक क्या था, है और क्या होगा? कल किस 'रंग' का था, आज किस रंग में है? कल किसकी लाइन...