नई दिल्ली, सितम्बर 22 -- अभी हम जो कुछ भी कर रहे हैं, ऐसा लगता है कि उससे हम अशांति की ओर, क्लेश और दुख की ओर ही बढ़ रहे हैं। अपने जीवन को देखिए, आप पाएंगे कि हमारा जीवन सदा दुख के कगार पर है। युद्ध को रोकने के हमारे सभी प्रयत्न, हमारी सामाजिक गतिविधियां, हमारी राजनीति, राष्ट्रों के सम्मेलन, मूलत: संघर्ष ही अधिक पैदा करते हैं। जीवन के पीछे-पीछे विनाश चल रहा है। क्या इस क्लेश को हम तुरंत समाप्त कर सकते हैं? क्या उलझन और दुख की जकड़न से मुक्ति पा सकते हैं? बुद्ध या ईसा जैसे महान व्यक्ति आए, उन्होंने किसी आस्था को स्वीकार किया और संभवतः अपने को दुख से मुक्त कर लिया। परंतु वे कभी दुख का निवारण नहीं कर पाए, कभी भ्रांति को समाप्त न कर सके। अतः हमारी समस्या, आपकी समस्या यह है कि क्या इस क्लेश से हम तत्क्षण बाहर निकल सकते हैं? यदि इस विश्व में रह...