नई दिल्ली, सितम्बर 26 -- आत्मा ही आनंद का स्वरूप है। कभी तुमने गौर किया है कि किसी भी सुखद अनुभूति में तुम अपनी आंखें क्यों मूंद लेते हो? जब किसी फूल को सूंघते हो, कोई स्वादिष्ट खाना चखते हो या किसी वस्तु का स्पर्श करते हो, तुम्हारी आंखें बंद हो जाती हैं। सुख वह है, जो तुम्हें आत्मा की ओर ले जाता है, वहीं दुख आत्मा से विमुख करता है। दुख का यही अर्थ है कि तुम अपरिवर्तनशील आत्मा पर केंद्रित होने के बदले विषय-वस्तु में फंसे हो, जो परिवर्तनशील हैं। सभी इंद्रियां केवल डाइविंग बोर्ड की भांति हैं, जो तुम्हें वापस आत्मा तक पहुंचाती हैं। सखा वह है, जो तुम्हारी इंद्रिय बन गया है, जो तुम्हारी इंद्रिय ही है। यदि तुम मेरी इंद्रिय हो, इसका मतलब तुम्हारे द्वारा मुझे ज्ञान मिलता है; तुम मेरी छठी इंद्रिय हो। जैसे मैं अपने मन पर विश्वास करता हूं, ठीक वैसे ...
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