नई दिल्ली, अगस्त 21 -- संसद का मानसून सत्र हंगामे से शुरू हुआ था और हंगामे पर ही उसका समापन हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए। लोकसभा में 120 घंटे चर्चा होनी चाहिए थी, पर मात्र 37 घंटे हुई है। मतलब, लोकसभा का लगभग 70 प्रतिशत समय बर्बाद हुआ है, जबकि राज्यसभा का 61 प्रतिशत से ज्यादा समय हंगामे की भेंट चढ़ा है। जाहिर है, समय की इस बर्बादी के लिए किसी एक को पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराना मुश्किल है। पहले के सत्रों में भी जिस तरह से वक्त बर्बाद हुआ है, उसमें सत्ता पक्ष ने विपक्ष को और विपक्ष ने सत्तापक्ष को जिम्मेदार ठहराया है। यह कोई नई परिपाटी नहीं है, पर हम यह उम्मीद जरूर कर सकते हैं कि आगामी सत्रों में पक्ष और विपक्ष के बीच कटुता घटेगी। कटुता घटने से संसद का कामकाज चमकेगा। हम विकास की बात करते हैं, विकास पर सवाल भी उठाते हैं, पर हम यह नहीं ...
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