नई दिल्ली, अक्टूबर 14 -- मनुष्य को जीवन में क्या चुनना चाहिए, वह जो अभी तात्कालिक सुख दे रहा है या वह, जो अंततः आत्मा को उन्नति की ओर ले जाए? एक बार एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया। यही प्रश्न श्रेय और प्रेय के बीच का मूल द्वंद्व है। साधु बनने के लिए हिमालय जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। प्रत्येक मनुष्य अपने घर में रहते हुए साधु बन सकता है, यदि वह श्रेय का मार्ग चुन ले। मनुष्य मात्र को ही पवित्र बनना है, संयमित बनना है और आत्माभिमुख जीवन जीना है। यही जीवन का सच्चा उद्देश्य है और यही प्रश्न का उत्तर भी कि क्या चुनें- श्रेय या प्रेय? श्रेय का अर्थ है श्रेष्ठ, कल्याणकारी, आत्माभिमुख, दीर्घकालिक हितकारी। श्रेय वह मार्ग है, जो भले ही कठिन लगे, त्याग और संयम मांगे, लेकिन अंततः आत्मा की उन्नति, पवित्रता और मोक्ष की ओर ले जाता है। यह दीर्घकालिक लाभ और ...