नई दिल्ली, जून 17 -- आषाढ़ मास 'चातुर्मास' की शुरुआत का प्रतीक है। यह समय तपस्वियों, संन्यासियों के लिए एक स्थान पर ठहरकर अनुशासन के साथ आत्मचिंतन और साधना का काल होता है। भारतीय वैदिक परंपरा में समय को केवल भौतिक नहीं, बल्कि दैवत्व का प्रतीक माना गया है। श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं- "कालः कलयतामहम्।" इसी पृष्ठभूमि में 'आषाढ़ मास' का विशेष स्थान है। यह ग्रीष्म ऋतु का अंतिम चरण और वर्षा ऋतु की पूर्व सूचना लेकर आता है। यह मास न केवल ऋतुओं के संक्रमण का परिचायक है, बल्कि धार्मिक, ज्योतिषीय और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। आषाढ़ मास की गणना वैदिक पद्धति से की गई है। इसका नामकरण पूर्णिमा तिथि पर पूर्वाषाढ़ा या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के संयोग से हुआ है। यह उत्तरायण का अंतिम महीना है, जिसके उपरांत सूर्य दक्षिणायन में प...