-प्रो. आर. एन. त्रिपाठी, सितम्बर 23 -- श्रीमद्भगवतगीता में 'समभाव' की बात कही गई है। 'सुखे दुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ'- यानी सुख-दुख, हानि-लाभ,जय-पराजय को समान भाव से समझकर कर्म करते रहना चाहिए। जीवन में प्रभु को समर्पित होकर समभाव रखने वाले व्यक्ति ही सफल होते हैं। गीता में इसी समभाव को रखने वाला, हर पल अपने जीवन में उत्सव महसूस करता है। यदि आप आत्मदृष्टि से सम्यक साधना के साथ जीवन जिएं, तो यह जीवन एक उत्सव है। अनुभूति करें, तो सभी के लिए हर पल आनंद के क्षण हैं। इस उत्सव का आनंद पाने के लिए आत्मिक ज्ञान होना बहुत जरूरी है। इस ज्ञान को पाने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। यदि योग्य गुरु मिल जाए, तो आपका जीवन उत्सव बन सकता है। गुरु आप किसी को भी बना सकते हैं या ज्ञान की अंतर्दृष्टि विकसित कर स्वयं के गुरु भी बन सकते हैं। व्यक्ति को ...
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