नई दिल्ली, जून 20 -- भारत में संगीत क्षणिक आमोद-प्रमोद व अतृप्त तृष्णा की वस्तु न होकर समस्त ब्रह्मांड अथवा व्यक्त जगत से ऐक्य का आभास है, चिरानंद प्रदान करने वाली आध्यात्मिक साधना है और सांसारिक दुखों से मुक्ति प्रदान करने व ब्रह्म तक मानव को ले जाने वाला मार्ग है। संसार में संभवतः ऐसा अन्य कोई देश नहीं, जहां संगीत इतने पुराने युग से जनजीवन में इतना व्याप्त हो, जितना वह भारत में सहस्रों वर्षों से रहा है। संसार की सभी जातियों की अपेक्षा भारतवासियों के कहीं अधिक संगीतप्रेमी होने की बात का जिक्र मेगस्थनीज भी कर गया है। ईसा पूर्व 150 के लगभग लिखे गए इंडिका नामक अपने ग्रंथ में आर्यन ने मेगस्थनीज का यह कथन उद्धृत किया है कि सब जातियों की अपेक्षा भारतीय लोग संगीत के कहीं अधिक प्रेमी हैं। भारत में संगीत ने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में वह...
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