नई दिल्ली, अगस्त 10 -- इसे स्वीकार करने का ठोस आधार नहीं है कि आज का बाजार 19वीं शताब्दी के बाजार से बहुत अलग है। वह मात्रात्मक रूप में भिन्न होते हुए भी गुणात्मक रूप में भिन्न नहीं है। मसलन, 19वीं शताब्दी में मार्क्स- एंगेल्स ने कम्युनिस्ट घोषणापत्र में यूरोपीय देशों के पूंजीपति वर्ग द्वारा माल उत्पादन और बाजार व्यवस्था को राष्ट्रीय सीमाओं से आगे वैश्विक बाजार व्यवस्था के रूप में विकसित करने का विश्लेषण किया था, वह प्रक्रिया आज भी जारी है। दूसरा, मार्क्स ने बाजारवादी आर्थिक मंदी के बारंबार खड़े होने को अपरिहार्य बताया था, जो तब से लेकर आज तक जारी है। तीसरा, मार्क्स ने घोषणापत्र में पूंजीवादी बाजारवादी व्यवस्था को दो परस्पर विरोधी वर्गों- साधन से संपन्न पूंजीपति वर्ग और साधनहीन होते सर्वहारा वर्ग में बंटते जाने का निष्कर्ष प्रस्तुत किया थ...