हापुड़, जुलाई 13 -- नगर के प्राचीन नक्का कुआं मंदिर में चल रही शिव महापुराण कथा के दौरान कथा वाचक ने शिवलिंग की महिमा और उसकी विविधता पर गहन प्रकाश डाला। कथा के दौरान जब महर्षियों ने सूत जी से प्रश्न किया कि हे सूत जी भगवान शंकर की लिंग रूप में पूजा का विधान क्या है, कृपया हमें विस्तार से बताएं, तब सूत जी ने श्रद्धालुओं को पार्थिव लिंग के महत्व की जानकारी दी। सूत जी ने कहा कि लिंग रूप की उत्पत्ति पुरुषार्थ और प्रकृति से हुई है। इस विषय को शिव स्वयं ही पूर्ण रूप से समझते हैं, परंतु मैं पार्थिव लिंग के पांच मुख्य भेदों को आपके समक्ष रखता हूं। स्वयंभू लिंग - जैसे बीज भूमि को चीरकर अंकुरित होता है, वैसे ही जो लिंग स्वयं प्रकट हो, उसे स्वयंभू लिंग कहा जाता है। बिंदु लिंग यह लिंग स्थावर (स्थिर) और जंगम (चलायमान) दोनों स्वरूपों में पूजनीय होता ह...