मथुरा, फरवरी 18 -- अपनी नियुक्ति से लेकर आज तक शिक्षामित्रों का जीवन संघर्ष में ही बीत रहा है। समायोजन रद होने के बाद से स्थितियां जस की तस हो गई। हिन्दुस्तान ने शिक्षा मित्रों का दर्द जानने का प्रयास किया तो उनकी पीड़ा निकलने लगी। यह पीड़ा जुबान से निकलने के साथ उनके चेहरे पर भी झलक रही थी। शिक्षामित्र स्कूल का ताला खोलने से लेकर, बच्चों को अध्ययन कराने और स्कूल का ताला लगाने तक जी तोड़ मेहनत करते हैं। इसके बाद भी उन्हें मानदेय के नाम पर मात्र 10 हजार रुपये ही हासिल होते हैं। शिक्षामित्र कहते हैं कि वह भले ही बच्चों को पढ़ाने का काम करते हों लेकिन उनकी स्थिति दिहाड़ी मजदूर से भी बदतर है। इतने कम मानदेय होने के बाद भी उन्हें किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता है। प्रत्येक वर्ष शीतकाल और ग्रीष्मकाल की छुट्टियों में 15-15 दिनों के लिए शिक्षा...