गुमला, फरवरी 19 -- विशुनपुर, ऋषिकेश। गुमला जिले के विशुनपुर अंचल में बसे घने जंगलों में बृजिया और बिरहोर जनजातियां आज भी कंद-मूल खाकर जीवनयापन करती हैं। इन जनजातियों की विलुप्त होती हस्तशिल्प कला को पुनर्जीवित करने के लिए विश्व भारती सेंट्रल यूनिवर्सिटी,प.बंगाल के दो विद्यार्थी नाजदीन परवीन और आसित कुमार ने अपने घर-परिवार को छोड़कर इन जनजातियों के बीच रहने का निर्णय लिया है। इस सराहनीय पहल में सामाजिक कार्यकर्ता फुलेश्वर बृजिया और प्रशांत दास भी उनका सहयोग कर रहे हैं। ये युवा इन जनजातियों को उनकी पारंपरिक शिल्पकला में नए आयाम जोड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, ताकि उनकी कला और संस्कृति न केवल संरक्षित रहे बल्कि एक नई पहचान भी मिले । विशुनपुर और आसपास के तूसरू कोना,नेतरहाट बृजिया टोली, जाहूप और अति दुर्गम जिलपिदह गांव में आदिम जनजातियों की ...