नई दिल्ली, जुलाई 27 -- हमारी धरती अकूत प्राकृतिक संसाधनों से भरी पड़ी है। मगर इसके अकूत कहने का गर्व हम तब तक ही कर सकते हैं, जब तक हम इसकी सुरक्षा, संरक्षा और उचित दोहन को लेकर जागरूक रहते हैं। अपनी इस संपत्ति के प्रति हमारी सजगता घटी नहीं कि इसके लुप्त होने में देर नहीं लगेगी। हममें प्राकृतिक संसाधनों के प्रति केवल सजगता की ही कमी नहीं है, बल्कि हम मनुष्यों का लोभ-लालच इतना बेकाबू हो चुका है कि अपनी विलासिता और अनावश्यक उपभोग के लिए अरबों वर्षों में निर्मित-संचित इस संपत्ति को अपने जीवनकाल में ही तबाह करने पर उतारू हो गए हैं। हम मनुष्य अपनी लालसा में यह भी ध्यान नहीं रख पाते हैं कि पृथ्वी ने इस संपत्ति को निर्मित-संचित कर रखा है, वह केवल हमारे लिए नहीं है। उसमें पृथ्वी के सभी चर-अचर जीवों और हमारी आने वाली असंख्य पीढ़ियों का भी हिस्सा ह...