बगहा, फरवरी 13 -- बेतिया शहर के लोगों को अलग-अलग अवसरों पर लजीज भोजन परोसने वाले हलवाइयों के खुद का जायका बिगड़ गया है। एक तो उन्हें कम मेहनताना मिल रहा है, ऊपर से ठेकेदारों की मनमर्जी का शिकार होना पड़ता है। काम करने के बाद भी ठेकेदार कई माह तक मेहनताना नहीं देते हैं। दर्जनों नए-नए रेस्टोरेंट खुल जाने से हलवाइयों के रोजगार पर संकट मंडराने लगा है। अपना स्वयं का व्यवसाय करने के लिए हलवाइयों को बैंक से आसानी से ऋण भी नहीं मिल पाता। लगन खत्म होते ही ये बेरोजगार हो जाते हैं, ऐसे में दिहाड़ी मजदूरी कर परिवार चलाने के लिए विवश होते हैं। प्रतिदिन काम की तलाश में गांव से शहर की यात्रा करने में भी इनकी आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है। हलवाइयों के लिए राज मिस्त्री की तरह सरकार की ओर से प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं की गई है। झुन्ना हलवाई, गोलू साह, जंगबहाद...
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