वाराणसी, मई 17 -- वाराणसी, मुख्य संवाददाता। वेदपंडित लक्ष्मण शास्त्री द्रविड़ काशी में जटापाठी के नाम से प्रसिद्ध थे। 14 वर्ष की अवस्था में वह रणवीर संस्कृत पाठशाला में अध्यापन करने लगे थे। बाद में वह कोलकाता में गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज में वेदांत के प्राध्यापक हुए। वर्ष 1912 में वायसराय ने महामोपाध्याय की पदवी प्रदान की थी। ये बातें पद्मश्री से अलंकृत पं.गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने कहीं। वह शुक्रवार को रामघाट स्थित सांगवेद विद्यालय में संस्थापक पं. लक्ष्मण शास्त्री द्रविड़ की स्मृति सभा को संबोधित कर रहे थे। आचार्य द्रविड़ ने कहा कि आचार्य सुब्रमण्यम शास्त्री द्रविड़ से मीमांसा और दंडी संन्यासी शंताश्रम स्वामी से वेदांत की गूढ़ शिक्षा अर्जित करने का सद्प्रभाव भविष्य में उनके द्वारा सांगवेद विद्यालय की स्थापना के रूप में फलित हुआ। उन्होंन...