बरेली, फरवरी 14 -- रोजगार सेवक ग्रामीण विकास की रीढ़ माने जाते हैं। मनरेगा के जरिए गांव को चमकाने की जिम्मेदारी इन पर होती है। ये न सिर्फ श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराते हैं बल्कि अपने जॉब चार्ट से इतर ग्रामीण विकास से जुड़े तमाम सर्वे भी करते हैं। इसके बावजूद रोजगार सेवकों की जिंदगी बदरंग होती जा रही है। हालात यह है कि इन्हें एक साल से मानदेय नहीं मिला है। अपने हित की आवाज उठाते ही ग्राम प्रधान और अधिकारियों की नाराजगी का शिकार होना पड़ता है। रोजगार सेवकों को न प्रमोशन की सुविधा और न ट्रांसफर नीति का लाभ दिया जाता है। 7788 रुपये के मानदेय से परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है। ग्रामीण विकास को रफ्तार देने के लिए अप्रैल 2008 में रोजगार सेवकों की नियुक्ति की गई थी। गांव के श्रमिकों को गांव में ही रोजगार मुहैया कराने की जिम्मेदारी रोजगार स...