नई दिल्ली, अगस्त 31 -- आलोक जोशी,वरिष्ठ पत्रकार कभी-कभी मुसीबत भी वरदान साबित होती है। भारत के आर्थिक-राजनीतिक इतिहास में 1991 का विदेशी मुद्रा संकट ऐसी ही एक मुसीबत थी, जिसके दबाव में तत्कालीन नरसिंह राव सरकार ने आर्थिक सुधारों का वह ऐतिहासिक सिलसिला शुरू किया, जिसने उद्योग-व्यापार ही नहीं, पूरे देश की तस्वीर बदलकर रख दी। इसे अभी याद करने का एकमात्र मकसद यह है कि कहीं हम एक बार फिर ऐसी ही मुसीबत से आंखें चार तो नहीं कर रहे हैं? अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ-मार से रुपया लगातार दबाव महसूस कर रहा है। यहां तक कि अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट रुपये के इस हाल पर कटाक्ष करने से नहीं चूके। एक तरफ उनका कहना है, भारत और अमेरिका को आखिरकार साथ आना ही होगा, मगर दूसरी तरफ यह पूछने पर कि भारत अगर अपनी मुद्रा (रुपया) को ही दूसरे देशों ...