रांची, मार्च 12 -- रांची, वरीय संवाददाता। रमजान-उल-मुबारक के दिन गुजरने के साथ ही रोजेदार कुरान की तिलावत और इबादत में पूरी तरह से मशगूल होते जा रहे हैं। मस्जिदों में भी दर्स-ए-कुरान और हसीद का सिलसिला तेज हो गया है। इबादतगार इसमें शामिल होकर कुरआन की शिक्षा, रोजा-नमाज की बारीकियों और उसकी फजीलत समझ रहे हैं। समाजसेवी रमजान कुरैशी ने बताया कि इस्लाम समाज में हर व्यक्ति के माल व दौलत पर दूसरे का भी हिस्सा होता है। जकात और खैरात के अलावा भी अपनी दौलत से अल्लाह की राह में खर्च करने को इबादत कहा गया है। इसलिए जरूरतमंदों की मदद करना बहुत बड़ा सवाब है। गरीब रिश्तेदारों पर खर्च करने से दोगुना सवाब मिलता है। तीन हिस्सों में बंटा है माह-ए-रमजान एदारा-ए-शरिया के मुफ्ती व काजी मो फैजुल्लाह मिसबाही ने बताया कि रमजान का पहला अशरा मुकम्मल हो गया। यूं तो...
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