नई दिल्ली, सितम्बर 20 -- बरसों पहले वह अनंतनाग में यकायक मिल गया था। परिचय होते ही उसने अपनी दर्दनाक दास्तां बयां करनी शुरू कर दी कि सियासी कारणों से उसे तरह-तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है। वह कलेक्टर के यहां फरियाद लेकर पहुंचा, पर वह या कोई अन्य सरकारी अधिकारी उसे सुनने को तैयार न था। बेबसी के उन लम्हों में अपने हाथ आसमान की ओर ऊपर उठाए और फफक पड़ा- दहशतगर्द फौज की वर्दी में और फौजी 'दाढ़ियें' बढ़ाकर जब चाहें, तब टपक पड़ते हैं। जो आता है, घर में घुसा चला आता है- या खुदा, यह अजाब हम पर कहां से आ टूटा! आज अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस है। इस मौके पर मैं समूची दुनिया में छाई अशांति और उससे उपजी वेदनाओं की चर्चा करना चाहता हूं। सन् 1981 में अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस की घोषणा करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपेक्षा की थी कि कम से कम इस मौके पर एक दिन क...
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